Wednesday, August 9, 2017

तराना-ए-आजादी

ये देश लुटता रहा और हम झंडा फहराते रह गये
जख्म दिल में था और हम चेहरा सहलाते रह गये

भूखी, बेरोजगार, बीमार और तंगहाल ये जनता
कंट्रोल की दूकान पर हम झोला हिलाते रह गये

वही राजा वही रानी, वही वंश है अब भी कायम
दरबार में सत्तर बरस हम चमचा हिलाते रह गये

कुर्बान हुई जवानी "साहिल" जिस देश की खातिर
देश नीचे गिरता रहा और हम जफ़ा गिनाते रह गये

No comments:

Post a Comment