Wednesday, August 9, 2017

तराना-ए-आजादी

ये देश लुटता रहा और हम झंडा फहराते रह गये
जख्म दिल में था और हम चेहरा सहलाते रह गये

भूखी, बेरोजगार, बीमार और तंगहाल ये जनता
कंट्रोल की दूकान पर हम झोला हिलाते रह गये

वही राजा वही रानी, वही वंश है अब भी कायम
दरबार में सत्तर बरस हम चमचा हिलाते रह गये

कुर्बान हुई जवानी "साहिल" जिस देश की खातिर
देश नीचे गिरता रहा और हम जफ़ा गिनाते रह गये

Sunday, May 21, 2017

गज़ल

गर चाहो किसी को तो जताना जरूरी है
जो बात दिल में है वो बताना जरूरी है

दिलरुबा कब कहती है कि उसका इंतजार करो
मगर रूठे कभी वो तो मनाना जरूरी है

चाहे टूटा फूटा ही क्यों ना हो पर अपना हो
एक हसीं आशियाना तो बनाना जरूरी है

हर इक बात दिल में रखोगे तो दिल टूटेगा
कभी एक दो बातों को भुलाना जरूरी है

वो तेरी थी और तेरी ही रहेगी "साहिल"
तुम्हें भी तो अपना उसको बनाना जरूरी है

Tuesday, January 24, 2017

राज - उपदेश

सभा थी दंग, सहमा सा था पुरा सदन
कृश काया थी, उधड़ा सा था पुरा बदन
पीठ झुकाये वह बुढ़ा, पर सीना ताने
आ खड़ा हुआ सदन में, ना कहना माने

बोला अपने कृश कंध उचकाते से
कर अपने दोनों जोड़े, सकुचाते से
हे नृप, आंखें खोलो! देखो इस शस्य धरा को
अमल धवल इस अमित व्योम को, अर्णव को

यह भूमि है राम कृष्ण की
बुद्ध, महावीर और मनु की
गंगा कावेरी जिसको सींचे है
सिन्धू जिसके पग भींचे है

चार ऋतुओं का देश यह प्यारा
सकल धरा पर अलग है न्यारा
हम सब इसकी संतान हैं प्रिय
सब अपने हैं कोई नहीं अप्रिय

सनातन है यह धरती, है धर्म सादा
निज सच्चाई है उच्च, उच्च है मर्यादा
वसुधैव कुटुंबकम का उदघोष सदा
स्वहित, राष्ट्रहित में नहीं बनती बाधा

हे भूप! फिर क्यों जल रहा देश?
मित्र और शत्रु का एक है भेष
जागो जागो!! आंखें खोलो
राष्ट्र-द्रोहीयों के पाप को तौलो

डर है भारत बदल ना जाए
अविरल गंगा पलट ना जाए
भरत की संतान ना कायर हो जाएं
संगीन थामे हाथ ना शायर हो जाएं

राजा का कर्म है आगे चलना
राजा का धर्म है धर्म पर चलना
राष्ट्रहित, स्वहित से रखो हमेशा उच्च
बलिदान किसी का ना हो जाए तुच्छ